- देश पर लगातार बढ़ रहा कर्ज का बोझ, मोदी राज में कर्जे में 123 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देश पर कर्ज़े का बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है, केंद्र की मोदी सरकार ख़र्चों को पूरा करने के लिए हर जगह से पैसा जुटाने में लगी हुई है | इसी के चलते मोदी सरकार ने देश की लगभग सारी सम्पति बेच दी है, बाकी जो बची है, उसको भी बेचने की कोशिश में लगी हुई है | जिसको बेच नहीं सकते, उसको गिरवी रख दिया गया है, वहीं दूसरी ओर सरकार लगातार क़र्ज़ लेती जा रही है | हाल ही में जारी आकड़े बताते है कि केंद्र सरकार पर सितम्बर 2021 तक 125.7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है | जोकि 2021-22 कि संसोधित सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) का लगभग 55 फ़ीसदी है, यानी 2021 की प्रोजेक्टेड जनसंख्या के हिसाब से सितम्बर 2021 तक प्रति व्यक्ति कर्ज 92,348 रुपए हो गया है| बजट 2022-23 के आकड़े बताते हैं कि 31 मार्च 2022 तक केंद्र सरकार पर कर्ज़ा बढ़कर ( वर्तमान एक्सचेंज रेट पर) 139 लाख करोड़ रुपए हो जायेगा जबकि आर्थिक कार्यालय विभाग के वास्तविक आंकड़े बताते है कि केंद्र सरकार, सितम्बर 2021 तक 125.7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी | यानी सरकार सितम्बर 2021 से 31 मार्च 2022 तक 13.3 लाख करोड़ का कर्ज ओर लेने वाली है | वही 2022-23 का बजट अनुमान बताता है कि 31 मार्च 2023 में यह कर्ज बढ़कर ( वर्तमान एक्सचेंज रेट पर) 155.3 लाख करोड़ रुपए हो जायेगा
- , यानी 31 मार्च 2022 से लेकर 31 मार्च 2023 के बीच सरकार 16.3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ओर लेगी | जैसा कि नीचे ग्राफ में दिखाया गया है| 2014 में मोदी जी की सरकार आने से पहले केंद्र सरकार पर कुल कर्ज़ा 53.1 लाख करोड़ रुपए था जोकि 31 मार्च 2023 को बढ़कर 155.3 लाख करोड़ रुपए हो जायेगा यानी मोदी जी के कार्यकाल में 100 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया जाना तय है | जिसमें से 70 फीसदी से ज़्यादा कर्ज सरकार अब तक ले चुकी है |
- 2021 की प्रोजेक्टेड जनसंख्या पर प्रति व्यक्ति आय, 2021-22 की संसोधित जीडीपी के हिसाब से 1,70,528 रुपए है जबकि प्रति व्यक्ति कर्ज 1,02,105 रुपए हो जाएगा। 2022-23 की अनुमानित प्रति व्यक्ति आय, 2022 की प्रोजेक्टेड जनसंख्या से हिसाब से 1,87,806 रुपए है जबकि प्रति व्यक्ति कर्जा की 1,13,055 रुपए हो जायेगा | यानी 31 मार्च 2023 तक पुरे देश की आमदनी (जीडीपी) का 60 फ़ीसदी से ज़्यादा तो केंद्र सरकार पर कर्ज हो जायेगा | जब कोई कर्ज लेता है तो उसका ब्याज देना पड़ता है | अब सरकार सालाना इस कर्जे पर कितना व्याज देती है ? 2022-23 के बजट के आकड़े बताते है कि साल 2020-21 में सरकार ने कर्जे पर 6.80 लाख करोड़ रुपए ब्याज के चुकाए है | वही 2021-22 के संसोधित अनुमान में सरकार को ब्याज के 8.14 लाख करोड़ रुपए चुकाने हैं, 2022-23 में सरकार को ब्याज के 9.41 लाख करोड़ रुपए चुकाने हैं | अब असल मुद्दे पर आते हैं| सरकार जो कर्ज ले रही है, उससे आम जनता पर क्या असर हो रहा है, और भविष्य में कितना असर लोगों पर पड़ने वाला है | जाहिर सी बात है, जब सरकार पर कर्ज ज्यादा हो जायेगा तो सरकार खर्च कम करेगी। लोगों से किसी न किसी माध्यम से पैसा वसूलने की कोशिश करेगी | जैसा कि मौजूदा सरकार कर रही है | आर्थिक मामलों के जानकार सुबोध वर्मा बताते हैं कि भूमिगत स्तर पर जो योजनाए चल रही है, जो लोगों को काफी हद तक राहत देती हैं, उसके बजट में सरकार ने कटौती की है | जैसे : ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का आवंटन 2022-2023 में 73,000 करोड़ रुपये है, जो पिछले साल के 98,000 करोड़ रुपये से लगभग 25% कम है। आईसीडीएस/आंगनवाड़ी आवंटन पिछले वर्ष के 20,000 करोड़ रुपये की तुलना में 20,263 करोड़ रुपये है। मात्र 1% की वृद्धि अर्थहीन है क्योंकि औसतन मेहगाई 5 फीसदी से ज़्यादा रही है। ग्रामीण आवास के लिए पीएम आवास योजना में पिछले साल के 20,390 करोड़ रुपये से इस साल 20,000 करोड़ रुपये खर्च में कटौती देखी गई है। सब्सिडी वाले रसोई गैस आवंटन के लिए उज्ज्वला योजना, पिछले साल 1,618 करोड़ रुपये से इस साल सिर्फ 800 करोड़ रुपये कर दी गई है। इसके अलावा, कई महत्वपूर्ण मंत्रालय के आवंटन में या तो कटौती या मामूली वृद्धि की है | जैसे : स्वास्थ्य मंत्रालय – पिछले साल के 88,665 करोड़ रुपये से बढ़कर इस साल 89,251 करोड़ रुपये हो गया। अगर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाए तो यह वास्तव में गिरावट है। कुल बजट व्यय के हिस्से के रूप में, स्वास्थ्य मंत्रालय का हिस्सा पिछले वर्ष के 2.35% से घटकर इस वर्ष 2.26% हो गया है। जीडीपी के हिस्से के रूप में, यह 0.38% से घटकर 0.35% हो गया है। शिक्षा मंत्रालय – हालांकि ऐसा लगता है कि खर्च पिछले साल के 88,002 रुपये से बढ़कर इस साल 104,277 रुपये हो जाएगा, क्योंकि सरकार के कुल खर्च में हिस्सेदारी पिछले साल के 2.33% से बढ़कर इस साल 2.64 फीसदी हो गई है। सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में, शिक्षा पर खर्च पिछले साल के 0,38% की तुलना में इस वर्ष 0.40% पर कम है। कई महत्वपूर्ण वस्तुओं पर सब्सिडी में भारी कटौती की गई है। इसका मतलब यह है कि इन सभी मामलों में कीमतें बढ़ेंगी क्योंकि सरकार मुनाफाखोरों और बड़ी कंपनियों को कीमतें तय करने देगी। 2021-22 संशोधित आकड़ो की तुलना में कमी की है | जैसे: खाद्य सब्सिडी – 28% की कमी की है | उर्वरक सब्सिडी – 25% की कमी की है | पेट्रोलियम सब्सिडी – 11% की कमी की है | वही दूसरी ओर मोदी सरकार ने एक ऐसा तंत्र बना दिया है, जिसमे टैक्स के रूप में आम जनता से पैसा वसूला जा रहा है जबकि बड़े-बड़े पूजी पतियों को टैक्स में छूट दी जा रहे है | इसका सीधा उदाहरण जीएसटी है | जीएसटी एक ऐसा तंत्र है जो आम जनता को टैक्स की क्ष्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है | नीचे ग्राफ में दिखाया गया है की 2017 से देश में जीएसटी लागु की गयी थी, और जीएसटी का कलेक्शन लगातार बढ़ता जा रहा है, जबकि कॉर्पोरेट टैक्स का कलेक्शन कम हुआ है क्योकि 2019 में सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स को कम किया है
- आकड़ो से साफ जाता है की मोदी सरकार इस निति पर चल रही की आम जनता के बजट में कटौती के अलावा अपनी कमाई का साधन बना रही है | वही अपने मित्र उद्योगपतियो को टैक्स में छूट देती जा रही है, इसलिए सरकार की आमदनी उस रेट से नहीं बढ़ी है जिस रेट से बढ़नी चाहिए थी | जिसके कारण सरकार को खर्चा पूरा करने के लिए कर्जा लेना पढ़ रहा है