राजपूतों की आन बान एवम सांन के प्रतिक एवम प्रेरणा स्रोत शिरोमणि महाप्रातापी महाराणा प्रताप की जयन्ती मनाई गयी। कार्यक्रम की शुरुआत महाराणा प्रताप के तैल चित्र पर माल्याअर्पण पूजा अर्चना एवम दीप पज्वलित कर किया गया। राजपूत बन्धुओ ने महाराणा प्रताप अमर रहे, का जोर शोर से उदगोष कर राजपूतों में नई ऊर्जा और जोश का संचार किया।
इस अवसर पर उपसमिति के अध्यक्ष श्री शेर सिंह ने महाराणा प्रताप की शौर्य औ पराक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप ने उस काल के अन्य राजाओं से भिन्न मुगलों के समक्ष आत्म समर्पण नहीं किया बल्कि उन्होंने घनें जंगल में रहकर सुखी रोटी से अपना कठिन वक़्त बिताया। अपनी सेनाओ को पुन: संगठित कर छापामार कार्यवाही कर अकबर की सेना को चना चबाते थे।
उपसमिति के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवम व्याख्याता शा.कन्या उच्च.मां.वि.खैरागढ़ श्री कमलेश्वर सिंह ने महाराणा प्रताप की जीवनी के महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करते हुए बताया कि उनका जन्म 9 मई 1540 को सिसोदिया वंश में हुआ था, उनके पिता उदय सिंह एवम माता महारानी जयंता बाई थी। वे उदयपुर मेवाड के राजा थे उन्होंने मुगल शासन के बादशाह अकबर की अधीनता कभी स्वीकार नहीं की। उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1597 में हुई। वे राजपूतों के आन बान और शान रहे है और रहेंगे। भारत के इतिहास मे वे वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ निश्चय के व्यक्तित्व के धनी थे उनका नाम सदैव अमर रहेगा।
इस अवसर पर श्री शेर सिंह, अध्यक्ष, सचिव श्री जितेंद्र सिंह, उपाध्यक्ष श्री धर्मा सिंह कार्यकारिणी सदस्य कमलेश्वर सिंह युवा अध्यक्ष श्री शुभम सिंह सक्रिय सदस्य श्री विश्वनाथ सहित सैकड़ो राजपूत सदस्य उपस्थित रहे।
