
कोरबा/पाली:- विकासखण्ड पाली अंतर्गत ग्राम पंचायत पोड़ी के आश्रित ग्राम लब्दापारा स्थित नदी से रेत निकालने हेतु 1.07 हेक्टेयर का ठेका लेने वाले ठेकेदार के द्वारा जमकर धांधली एवं मनमानी करते हुए शासन को भारी राजस्व की क्षति पहुँचायी जा रही है, जहां 1.07 की जगह 10 एकड़ से भी अधिक में रेत खनन कार्य कराकर व सरकारी दर पर 491 रुपये रॉयल्टी पर्ची के साथ प्रति ट्रैक्टर देने वाले रेत को 1000 लिए बिना नहीं दी जा रही है, जबकि पर्ची में 491 रुपये ही लिखा जा रहा है। बता दें कि 491 रुपए में रेत ट्रैक्टर में भरकर देना है और यदि भरकर नहीं दी जाती है तो रेत की कीमत मात्र 288 रुपये है। इसके एवज में पर्ची पर सीधे 1000 तथा बिना पर्ची 500 रुपये प्रति ट्रैक्टर रेत का लिया जा रहा है। इधर 491 रुपए प्रति ट्रेक्टर मिलने वाली रेत को सरकारी से लेकर निजी निर्माण कार्य कराने वाले जरूरतमंदों द्वारा ईंधन व मजदूर खर्च मिलाकर 2500 से 3500 सौ रुपए में मजबूरन खरीदा जा रहा है। दूसरी ओर ठेकेदार द्वारा लब्दापारा रेत घाट के अलावा पोड़ी के समीप लीमघाट, दावनपारा, नवाडीह, उराँवपारा, सालिहाभाठा के अतिरिक्त ग्राम पंचायत ढुकुपथरा, तालापार, मुनगाडीह, डोंगानाला स्थित नदी से भी रेत निकाल बिक्री किया जा रहा है। जिन सभी स्थानों पर मिलाकर प्रतिदिन लगभग 50 से 60 ट्रेक्टर लगते है, किंतु रॉयल्टी पर्ची लब्दाघाट का ही काटा जाता है वह भी पूरे दिनभर में बमुश्कित 5 ट्रेक्टर का ही होगा, जिस कार्य के लिए ठेकेदार द्वारा बकायदा हर घाट पर अपने कारिंदे नियुक्त कर रखे है, जिनके देखरेख में पूरा गड़बड़झाला को खुलेआम अंजाम देते हुए बड़े पैमाने पर रेत की चोरी के साथ रॉयल्टी की भी चोरी करते हुए शासन को हर माह भारी राजस्व का चूना लगाया जा रहा है। इस संबंध पर कुछ ट्रेक्टर मालिकों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि रॉयल्टी पर्ची से अच्छा तो चोरी का रेत सस्ता पड़ता है, जबकि सरकारी नियम के तहत रेत लेने पर 500 रुपए अतिरिक्त देना पड़ रहा है। इस तरह की मनमानी पर सुनवाई करने वाला कोई भी कोई जवाबदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि नहीं है। जिस खामोशी का भरपूर फायदा ठेकेदार द्वारा उठाया जा रहा है। इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाना चाहिए। ग्रामीण लब्दापारा नदी में रेत घाट खोलकर प्रशासन ने राहत तो दी है लेकिन अतिरिक्त वसूली के कारण आम जनता की परेशानी “आसमान से टपके खजूर में अटके” वाली कहावत की भांति हो चली है। जिसे लेकर जिम्मेदार प्रशासनिक अमला या क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी समझ से परे है।