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आम तौर देखा गया है कि राज महलों में षडयंत्र की काली साया मंडराते रहती है। छल—स्वार्थ—प्रपंच... राजा और महल को घेरे रहते हैं। कुछ एक वफादार होते हैं पर वे सिर्फ वफादार होते हैं, बौद्धिक संपदा और कुटिलता में वे मार खा जाते हैं। खैरागढ़ का राजवंश और स्व. देवव्रत सिंह भी इससे अछूते नहीं रहे।
खैर… वर्तमान में खैरागढ़ के राजवंश में जो घट रहा है, उस पर लगाम न लगाया गया तो राजवंश का गौरवशाली इतिहास बुरी तरह झुलस कर रह जाएगा। केवल और केवल संपत्ति् और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में खैरागढ़ के प्रतिष्ठित राजघराना का सम्मान ढलान की ओर जा रहा है।
….पूरा घटनाक्रम कितना नाटकीय है, इसकी बनगी देखिए.. 11 करोड़ में तलाक लेकर देवव्रत सिंह और खैरागढ़ को छोड़कर चली गई पदमा सिंह अपने पति देवव्रत सिंह की मौत के बाद वापस खैरागढ़ लौट आई है। रणनीतिक चाटुकार बकायदा तलाकशुदा पदमा सिंह को स्वीकार कर अपनी राजनीतिक वजूद बचाए रखने में सफल नजर आ रहे हैं।
…. दूसरी ओर देवव्रत सिंह की दूसरी पत्नी विभा सिंह 2017 में शादी के बंधन में बंधी। कुछ एक महीने रहने के बाद वे भी खैरागढ़ में देवव्रत सिंह के साथ नहीं रह पाई। विभा सिंह भी तलाक चाहती थीं। देवव्रत सिंह की मौत के बाद पत्नी विभा सिंह वापस खैरागढ़ लौट आईं।
अब पूर्व और वर्तमान की जंग जारी है। जहां विभा सिंह को जबर्दस्त कुचक्र में फंसाकर चारो—खाने चित कर दिया गया है। हालांकि विभा सिंह मैदान में डटी है। वे भी धमाका करेंगी, ऐसा उनकी खामोशी के पीछे छुपी हलचल संकेत दे रही है।
……चलो अब विषय पर आते हैं। राजा व विधायक देवव्रत सिंह की मौत संदिग्ध है! ऐसा उनकी वर्तमान पत्नी विभा सिंह का मानना है। विभा सिंह विवाह के बाद काफी कम समय ही खैरागढ़ में रहीं। देवव्रत सिंह के साथ भी उन्होंने लंबा समय नहीं गुजारा। दीपावली में जब देवव्रत सिंह मौत से लड़ रहे थे, तब उनकी पत्नी विभा सिंह हजारों किलोमीटर दूर थी। क्यों थी? यह उनका निजी मामला है। देवव्रत सिंह की मौत के बाद दिल में दर्द और आंखों में आंसू लिए विभा सिंह खैरागढ़ पहुंची। ….दूसरी ओर नाटकीय अंदाज में देवव्रत सिंह की तलाकशुदा पत्नी पदमा सिंह भी पहुंच गई। ये वही पदमा सिंह है जिन्होंने देवव्रत सिंह से नाता तोड़ दिया था। उनकी दो संतानें शताक्षी सिंह और आर्यवर्त सिंह अपने पिता यानी देवव्रत सिंह के करीबी थे। वे अपनी बुआ उज्ज्वला सिंह के साथ अपना अधिक समय गुजारा करते थे, ऐसा सोशल मीडिया में शेयर फोटोस को देखकर समझ आता है!
….अब कड़वी बात यह सामने आती है कि जितना प्यार और आंसू उनकी पत्नियां देवव्रत सिंह की मौत के कुछ समय बाद तक बहाती रही…. यदि देवव्रत सिंह की मौत के पहले ये भावनाएं उमड़ती तो शायद आज तस्वीर अलग होती।
पदमा सिंह तलाकशुदा है। यानी सीधी बात है कि देवव्रत सिंह की राजनीतिक विरासत हो या संपत्ति.. दोनों पर ही पदमा सिंह नैतिक व वैधानिक अधिकार खो चुकी है। देवव्रत सिंह की मौत के बाद उनका अचानक खैरागढ़ आना। उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने की मंशा जाहिर करना। संपत्ति मामले में चाहते हुए या न चाहते हुए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप करना, यह थोड़ा असहज प्रतीत होता है। हालांकि खैरागढ़ की जनता पदमा सिंह को अपना करीब मानती है, क्योंकि उन्होंने लंबा समय खैरागढ़ को दिया है। वे खैरागढ़ से उप विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी है। पैलेस की राजनीति से अपना वजूद बनाने वाले व फायदे में रहने वाले राजनीतिज्ञों की एक जमात पदमा सिंह के साथ खड़े हो गए हैं। क्योंकि पदमा सिंह के पास…वारिस… है। उनके पास शताक्षी सिंह और आर्यवर्त सिंह हैं। आर्यवर्त सिंह के रूप में पैलेस की राजनीति जिंदा रखी जा सकती है। वहीं राजवंश का राजनीतिक भविष्य एक दशक बाद फिर सामने आ सकता है।
अब देवव्रत सिंह की दूसरी पत्नी विभा सिंह …. वैधानिक रूप से विभा सिंह ही देवव्रत सिंह की राजनीतिक विरासत व उनके हिस्से की संपत्ति की जायज हकदार मानी जा सकती! किंतु पिछले दिनों जो आडियो रिलीज की गई, वह प्रमाणिक है या नहीं.. ये.. और बात है… लेकिन उसमें अधिकांश बातें जो हुई वह एक पति—पत्नी के बीच सामान्य तौर पर होने वाली नोंकझोक ही थीं। किंतु उसमें कासिम, पाटेकर, जिंदा व्यक्ति को खुद का श्राद्ध करने वाली जो बातें सामने आई, उसने देवव्रत सिंह के चाहने वाले व खैरागढ़ियां को व्यथित कर दिया। उदयपुर में जो उपद्रव की स्थिति बनी, इसकी स्क्रिप्ट तय थी। आडियो रिलीज करने के पीछे का मकसद काम कर गया। अब जनता व राजनीतिक सिपाहसलार विभा सिंह से दूर हो चुके हैं। जनता के मन में विभा सिंह के प्रति सहानुभूति क्षीण हो चुकी है। हालांकि पदमा सिंह के प्रति भी सहानुभूति नहीं रह गई हैं किंतु उनके साथ परिवार व कार्यकर्ता है। इसलिए उनकी ताकत बढ़ गई है।
खैर… खैरागढ़ में आर्यवर्त का राजतिलक होने के बाद अब पदमा सिंह का भी राजनीतिक तिलक कर दिया गया है। वे मैदान में आ चुकी है। देवव्रत सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर उन्होंने खुद को उत्तराधिकार घोषित कर दिया गया है। पैलेस की राजनीतिक से जुड़े नेता व कार्यकर्ता उन्हें स्वीकार भी कर चुके है। उन्हें अपना समर्थन भी दे चुके है। पदमा सिंह विधानसभा के कार्यक्रमों में शामिल भी होने लगी है।