विश्व आदिवासी दिवस की सार्थकता केवल एक दिन की शुभकामनाओ में नहीं प्रत्येक दिन प्रयासों में निहित है…! स्वामी सुरेन्द्र नाथ
भारत के ही नहीं पूरे विश्व के मूल निवासी आदिवासी भाई-बहन हैं, पर्यावरण प्रेमी और संरक्षक आज अपने ही संरक्षण के लिए संघर्षरत है, क्योंकि जो आदिवासी भाई-बहन पढ़ लिख कर आगे बढ़ गए, बड़े बड़े अधिकारी, नेता, डॉक्टर इंजीनियर बन गए वे आदिवासी नहीं रहे संभ्रांत वर्ग बन गए और आत्मकेंद्रित होकर स्वयं की सुविधाओं और सफलता के लिए काम करते हैं। वे अपने समाज को भुला कर आगे बढ़ जाते हैं।
सबसे पहले तो हमें ये जानना जरूरी है कि ये दिवस क्यों मनाया जाता है, पूरे विश्व के आदिवासी लोगों के लिए यह उत्सव के रूप में हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिन है जो दुनिया भर के लोगों को दुनिया की आदिवासी आबादी के अधिकारों के बारे में जागरूक करता है। इस दिन का उत्सव उन विभिन्न योगदानों और उपलब्धियों को पहचानना है जो मूल आदिवासी लोगों ने दुनिया के लिए किए हैं। इस दिन को पहली बार दिसंबर 1994 की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा घोषित किया गया था; तब से, हमने इस दिन को दुनिया भर में महत्वपूर्ण दिनों में से एक के रूप में मनाते हैं।
आदिवासी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने और दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने में उनके योगदान और उपलब्धियों को स्वीकार करने के लिए हर साल 9 अगस्त को भारत सहित पूरे विश्व में विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
किसी समाज का उत्थान एक दिवस मनाने मात्र से नहीं हो जाएगा, एक व्यक्ति यदि बढ़ जाए तो वह अपने परिवार की तरह अपने समाज का भी ध्यान रखे तभी उस समुदाय में जागरूकता आएगी, लेकिन विडंबना है कि संविधान में प्रावधान किए गए हैं, आरक्षण और विशेषाधिकार भी प्रदान किया गया है। सरकारें प्रयास करती रही हैं और बहुतायत संख्या में लोग संभ्रांत वर्ग में शामिल हो गए किन्तु आज भी ग्रामीण आदिवासी वर्ग वंचित है तो इसका कारण उन लोगों की बेईमानी है जो स्वयं दलदल से बाहर निकलते ही अपनो को भूल गए। अपने ही प्रदेश छत्तीसगढ़ में कितने लोग हैं जो आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं आदिवासी समाज के उत्थान के नाम पर जो मंत्री बन गए जो अधिकारी बन गए जिन्होंने आरक्षण का लाभ लिया जिन जो आगे बढ़ गए लेकिन ऐसे कितने मंत्री हैं जिन्होंने अपने समाज के लिए अपने जीवन समर्पित किया हुआ हो ऐसे कितने अधिकारी है जिन्होंने अपने समाज के लिए त्याग किया है कि आपकी भावना ही खत्म हो गई है संभ्रांत बनते ही अपने पूर्वज, अपने वंशज, अपने समाज को भुला बैठे हैं यही कारण है कि आज भी 21वीं शताब्दी में भी हमारा आदिवासी वर्ग वंचित वर्ग में गिना जा रहा है और आज भी वह आमूल चूल बुनियादी जरूरत के लिए संघर्षरत है।
छत्तीसगढ़ आदिवासी समुदाय बहुलता वाला राज्य है, छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे भारत के मुकुट हैं आदिवासी भाई-बहन इनके उत्थान में आज भी कमी है क्योंकि जो लोग आगे बढ़ जाते हैं, वे अपनो को उठाने के लिए पीछे पलट कर कभी नहीं आते, इसे गम्भीरता से लेना होगा तभी इन्हें मूल धारा से जोड़ा जा सकता है..!!