खैरागढ़ ::शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर महेश मिश्रा ने मरणोपरांत देह दान का निर्णय लिये।
73 वर्ष पूर्ण कर 74 वर्ष में प्रवेश करने वाले खैरागढ़ शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर महेश मिश्रा ने अपने देहदान का निर्णय कर चुके हैं उन्होंने बताया की मेरी पत्नी और 5 बेटिया व 4 दामाद हैं जिनसे मैं देहदान के निर्णय के बारे में बताया तो ओ भी मेरे इस फैसले से सभी सहमत हैं। देहदान करने से पहले इसकी मेडिकल कॉलेज में लिखित औपचरिक्ता पूरी करनी पड़ती हैं जो मैने परिवार की सहमति से कर ली है।
मैं जिस शरीर की आज तक सेवा की सुरक्षित रखा क्या उसको राख में मिलाने के लिये? नहीं तब मैं निर्णय लिया की आने वाले भविष्य में मेरे शरीर की सबसे ज्यादा आवश्यकता मेडिकल के छात्रों को है। मनुष्य का मृत शरीर 3 वर्षों तक काम आता है। मुझे इस बात की खुशी है की मेरा शरीर मरने के बाद भी लोगों के काम आयेगा। एक छात्र को पढ़ने के लिये 12 बड़ी की जरूरत पड़ती है। मेडिकल कॉलेज में अभी 3वर्षों में 3बड़ी ही मिली है। मेडिकल के छात्रों की पढ़ने के लिये बाडी की जरूरत पड़ती है। राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है देह दान।
बाडी को क्रम से खोलते है जो तीन वर्ष तक काम आता है।
आज देखा गया की समाज में दो वर्ग ही देह दान करता है
एक शिक्षित वर्ग और दूसरा गरीब वर्ग जो फूटपाथ में मृत पाए जाते है जो एक्सीडेंटल न हो उनकी बाडी रहती है
मृत बाडी छात्रों के पढ़ने के काम आती है।
उनका कहना है की लोगों को देहदान में आगे आना चाहिये देहदान सबसे बड़ा दान है।
मृत शरीर भी लोगों के समाज के काम आ रहा है इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है।
देहदान के बारे में मेडिकल कॉलेज में एटानामी विभाग में औपचारिकताएं पूरी कर ली गई है। मुझे इस बात की खुशी है की मेरा शरीर दूसरों के काम आयेगा।