*लोक कलाकारों के प्रति समाज का भाव अहसान करने जैसा न हो : विनोद वर्मा*
• इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के लोक संगीत विभाग और कला संकाय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ.
• मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए मुख्यमंत्री के सलाहकार और वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा
• लोक कला मंच ‘रंग-सरोवर’ की शानदार प्रस्तुति के साथ संगोष्ठी का पहला दिन संपन्न.
रायपुर/खैरागढ़। ‘लोक कला और लोक कलाकारों के प्रति समाज का भाव उपकार करने जैसा हो गया है। हमें लोक कलाकारों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि कलाकार पृथ्वी का विनाश रोकते हुए दुनिया को प्रकृति से जोड़ने का काम करते हैं।’ उक्त बातें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रमुख सलाहकार, वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक विनोद वर्मा ने कही।
श्री वर्मा इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘सुरता’ (राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता में छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों की भूमिका) के शुभारंभ सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लोक कला और लोक कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए सबसे बड़ा संकट आजीविका का रहा है। सरकारें और समाज लोक कलाकारों का वह ऋण नहीं चुका पा रहे हैं, जो चुकाने चाहिए। उन्होंने कहा कि यात्राएं जरूरी हैं। यात्राएं सिखाती हैं। चाहे वस्तु हों, या विचार, यात्राएं उन्हें विस्तार देती हैं और परिपक्व बनाती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति पद्मश्री डॉ. मोक्षदा (ममता) चंद्राकर ने दिवंगत छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों को स्मरण करते हुए उस दौर के बारे में बताया जब उनके पिता, मूर्धन्य छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार दाऊ महासिंह चंद्राकर जीवित थे और उन दिनों उनके घर लोक कलाकारों का अनवरत आना-जाना लगा रहता था। उन्होंने कहा कि लोक कलाकार सिर्फ कलाकार नहीं होते, बल्कि लोक संस्कृति के ध्वज वाहक होते हैं। लोक कलाकारों के कारण स्थानीय परंपराएं और संस्कृति देश-दुनिया में प्रसारित-प्रसारित होती हैं। छत्तीसगढ़ की लोककला और संस्कृति की अपनी एक विशिष्ट पहचान है। हमें अपनी इसी विशिष्टता को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए और संस्कृति के संवाहक के रूप में समाज के प्रति अमूल्य योगदान देने वाले लोक कलाकारों का सम्मान करना चाहिए।
मोनोग्राफ पर सहमति
संगोष्ठी के शुभारंभ समारोह का संचालन कर रहे अधिष्ठाता डॉ. योगेंद्र चौबे ने मंच से प्रस्ताव रखा कि क्यों न राष्ट्रीय अस्मिता के लिए उल्लेखनीय योगदान देने वाले छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों पर मोनोग्राफ़ तैयार किया जाए। डॉ. चौबे के इस प्रस्ताव पर मुख्य अतिथि श्री वर्मा ने अपने संबोधन के दौरान सहमति व्यक्त करते हुए कुलपति को सुझाव दिया कि इसके लिए योजना बनाकर चर्चा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मोनोग्राफ से विद्यार्थी, शोधार्थी के साथ नई पीढ़ी लाभान्वित हो सकेगी।
‘रंग-सरोवर’ की शानदार प्रस्तुति-भरथरी
दो दिनों के इस वृहद कार्यक्रम में पहले दिन की शाम 6.30 बजे ‘रंग-सरोवर’ सांस्कृतिक संस्था के द्वारा प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी भूपेंद्र साहू के निर्देशन में लोक नाट्य भरथरी की प्रस्तुति दी गई। दूसरे दिन की शाम समापन के पूर्व विश्वविद्यालय के लोक संगीत विभाग के द्वारा पारंपरिक लोकगीतों की प्रस्तुति दी जाएगी।
चार प्रश्नों से संवाद की शुरुआत
साहित्यकार एवं समीक्षक प्रोफेसर डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आधार वक्तव्य देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और परंपरा का वृतांत और कैनवास बहुत बड़ा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने में लोक संस्कृतियों का बड़ा योगदान है। उन्होंने प्रसिद्ध समाजशास्त्री पीसी जोशी की किताब ‘बदलते संदर्भ, उजड़ते लोग’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में बहुलता की अपनी विशेषता है। इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की शिष्या रहीं सिस्टर निवेदिता की एक किताब का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में मौजूद विभिन्नताएं और उन विभिन्नताओं के बावजूद सभी का एक-दूसरे से अंतर्संबंध स्थापित करने वाला अदृश्य सूत्र भारतीय संस्कृति का विशेष आकर्षण है। उन्होंने प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. पीसी जोशी लिखित किताब में उठाए गए प्रश्नों- पहला, क्या लोक समुदाय पारंपरिक रूप में जीवित रह सकता है? दूसरा, क्या उन्हें नए स्वरूप में ढाजा सकता है? तीसरा, आज के बदलते संदर्भ में उनका क्या भविष्य है? चौथा, उन्हें सुरक्षित ही नहीं, जीवित रखने के क्या विकल्प हो सकते हैं? का वाचन करते हुए अपेक्षा व्यक्त की कि इस संगोष्ठी में इन प्रश्नों पर सार्थक चर्चा होगी।
उल्लेखनीय है कि खैरागढ़ विश्वविद्यालय में लोक संगीत विभाग और कला संकाय के इस दो दिवसीय आयोजन में पंडवानी के प्रतिनिधि कलाकार झाड़ूराम देवांगन, पद्मश्री पुनाराम निषाद, छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य नाचा-गम्मत के पुरोधा रामचंद्र देशमुख, दाऊ दुलार सिंह मंदराजी, दाऊ महासिंह चंद्राकर, भरथरी की प्रतिनिधि गायिका सुरूजबाई खांडे, पंथी के मूर्धन्य कलाकार देवदास बंजारे, सुप्रसिद्ध रंगकर्मी पद्मभूषण हबीब तनवीर एवं उनके नाचा कलाकार, मदन निषाद, लालूराम, पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर, फिदाबाई मरकाम आदि पर केंद्रित चर्चा जारी है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक साहित्यों पर भी वक्ता अपने विचार व्यक्त करने जा रहे हैं।
ये हैं वक्ता
विषय विशेषज्ञ और वक्ता के रूप में साहित्यकार एवं लोककला मर्मज्ञ डॉ. पीसी लाल यादव, सुप्रसिद्ध लोक कलाकार दीपक चंद्राकर, साहित्यकार एवं लोककला मर्मज्ञ डॉ. जीवन यदु, समीक्षक एवं साहित्यकार प्रो. डॉ. विनय कुमार पाठक, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डॉ. अनिल कुमार भतपहरी, समीक्षक एवं साहित्यकार प्रो. रमाकांत श्रीवास्तव, अधिष्ठाता (लोक संगीत एवं कला संकाय) डॉ. योगेंद्र चौबे, अधिष्ठाता (दृश्यकला संकाय) डॉ. राजन यादव सेमिनार को संबोधित करने जा रहे हैं। शोधार्थियों द्वारा शोध पत्रों का वाचन भी किया जाएगा। कार्यक्रम में कुलसचिव प्रो. डॉ. आईडी तिवारी, समस्त अधिष्ठाता समेत पूरा विश्वविद्यालय परिवार उपस्थित हुआ। उद्घाटन सत्र का संचालन अधिष्ठाता डॉ. योगेंद्र चौबे ने, आभार प्रदर्शन लोक-संगीत विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. दीपशिखा पटेल ने किया। इस कार्यक्रम में साहित्यकार डॉ. पीसी लाल यादव लिखित एक किताब का विमोचन भी किया गया।