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घराने की वारिसानों के शुभ चिंतक ने भेजा गुप्त नाम जद पत्र..

  • *▪️घराने की वारिसानों के शुभ चिंतक ने भेजा गुप्त नाम जद पत्र…*

*चाचा बोले–भतीजे से*

*व्यंग्य सूचना*

चाचा ख़बर सुनने को मिल रहा है कि एक बड़े विवादित संपत्ति के घराने से जुड़े वारिसानों के शुभ चिंतक आजकल कुछ विभागों में खरीदी बिक्री पर रोक लगाए जाने हेतु गुप्त पत्र भेज रहे हैं। चाचा – सही ख़बर सुने हो भतीजे। भतीजा – चाचा , शुभ चिंतक ने जो पत्र में लिखकर भेजा है क्या वह सत्य है? चाचा – हाँ भतीजे निवेदक ने निवेदन किया है कि सदियों पहले ही उनके दादा ने अपने पोती के नाम ज़मीन दान कर दिया था। भतीजा- पर माजरा क्या है चाचा ? निवेदक को गुप्त संचार करने की आवस्यकता क्यों पड़ रहा है। चाचा- भतीजे उनकी सौतेली माँ धड़ल्ले से ज़मीन की बिक्री करने जो आमदा है। भतीजा- सुना है उसके नाम पर भी कुछ ज़मीन है। जिसे वह बेच रही है। तो इसमें बुराई ही क्या है ? वह अपने हिस्से की बेच रही है। चाचा- सही सुना है भतीजे , उसे भी मिला है ज़मीन के कुछ टुकड़े। बेचे या दान करें हमें क्या है? भतीजा- पर ऐसे में चाचा गुप्त पत्र भिजवाने का मतलब क्या है? चाचा- बुड़बक भतीजे , वरिसानों को लगता है की उनके हक़ की सभी ज़मीन कहीं सौतेली माँ बेच न दे। ये गुप्त पत्र भी इसी उद्देश्य से भेजा गया है ताकि कोई खरीद न सके और सामने वाला न बेच सके। समझे की नहीं कुछ…. भतीजा- समझ गया चाचा जी। लेकिन चाचा जी ये भी तो है न की वह अपनी ज़मीन ही बेच खरीद रहे हैं। आपको नहीं लगता कि कोई उन्हें आर्थिक क्षति पहुंचाने के ध्य्ये से इस तरह का करतूत कर रहा है। चाचा- हो सकता है भतीजे ये मुमकिन है। क्योंकि ज़मीन जायदाद के मामले में सियासत से भी ज्यादा कूटनीति होती है। खैर… जिनके नाम पर है उनके पास दस्तावेज भी हैं जिसके आधार पर ही वह खरीद बेच रहे हैं । उनको भी पता है कानून भी कोई चीज है, भतीज । भतीजा – चाचा मैंने तो सुना है कि पोती के नाम पर कोई चीज नहीं है बल्कि उसे तो पति ने अपने पत्नी को सप्रेम भेंट किया था।

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