- जिले में बोई जानी वाली धान एवं दलहनी, तिलहनी फसलों को तीन प्रकार के पोषक तत्वों की आश्यकता अनुरूप सुझाव जिले में इस वर्ष 2 लाख 85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान फसल बुवाई का लक्ष्य प्राप्त हुआ है। जिले में खरीफ धान की तैयारी मानसून के आगमन के साथ ही शुुरू हो गई है और खेत की तैयारी के साथ खाद एवं उर्वरक की व्यवस्था के लिए समितियों में पर्याप्त मात्रा में यूरिया, डीएपी और पोटाश की मांग अनुसार भण्डारण भी किया जा रहा है। जिले में बोई जानी वाली धान एवं दलहनी, तिलहनी फसलों को तीन प्रकार के पोषक तत्वों की आश्यकता होती है। प्रथम नत्रजन, जिसका कार्य है जड़, तना, पत्ती की वृद्धि और विकास में सहायक। दूसरा फास्फोरस जिसका कार्य है बीज और फलों का विकास तथा पौधों में पुष्पन व जड़ों के विकास के लिये सहायक एवं तीसरा पोटाश पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है तथा ठंडक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों जिसमें कीट व्याधियां भी शामिल है, को सहन करने की क्षमता को बढ़ाता है।
इन पोषक तत्वों को प्राप्त करने लिये हमारे पास तीन विकल्प –
यूरिया (नत्रजन), फास्फोरस (डीएपी/सिंगल सुपर फास्फेट), पोटाश (म्यूरेट आफ पोटाश), एनपीके (मिश्रित उर्वरक)।
कृषकों से अपील है कि धान फसल के अधिक उत्पादन के लिए उर्वरक का साझेदारी पूर्वक उपयोग मिट्टी परीक्षण स्वास्थ्य कार्ड में अनुशंसित उर्वरक मात्रा अनुसार करें। साथ ही सही समय व सही मात्रा में खाद का उपयोग करने से उच्च गुणवत्तायुक्त फसल प्राप्त होता है। जिले में तीन प्रकार के धान किस्मों की खेती होती है। जिसमें जल्दी पकने वाली किस्में, मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में तथा सुगंधित धान वाली किस्मों के रूप में धान फसल की खेती की जाती है।
सामान्य तौर पर धान के खेत की तैयारी से लेकर धान के कंसे निकलते समय तक उर्वरकों की मात्रा जिसमें नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश की आवश्यकता फसल बढ़वार लिये होती है। इसके लिये जुताई के समय 6 से 8 क्ंिवटल वर्मी, सुपर कम्पोस्ट खाद को खेत में मिलाने से खेत की भौतिक दशा बहुत अच्छी हो जाती है। उसके बाद धान फसल की खेत की तैयारी के उपरांत धान के अवस्था अनुरूप खाद का उपयोग करने से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।
शीघ्र पकने वाली किस्में के लिए खेत की तैयारी के समय उर्वरक प्रति एकड़ मात्रा खेत में मिलाने के लिये 24 किलोग्राम नत्रजन (स्त्रोत के रूप में 1 बोरी यूरिया) 24 किलोग्राम फास्फोरस (जिसके लिये यदि डीएपी उपलब्ध हैं तो 1 बोरी तथा डीएपी उपलब्ध नहीं है तो 3 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट व 24 किलोग्राम पोटाश जिनकी पूर्ति आधा बोरी पोटाश के माध्यम से उपरोक्त पोषक तत्वों की पूर्ति किया जा सकता है।
धान में खेत की तैयारी के बाद कंसे निकलते तक किसी भी प्रकार का खाद नहीं डालना चाहिए। जब फसल 45-50 दिन बाद धान में कंसे फूटने लगे तब 24 किलोग्राम नत्रजन जिनके लिए 1 बोरी यूरिया पुन: पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए।
मध्यम पकने वाली किस्में के लिए खेत की तैयारी के समय उर्वरक प्रति एकड़ मात्रा खेत में मिलाने के लिये 30 किलोग्राम नत्रजन स्त्रोत के रूप में 2 बोरी यूरिया, 24 किलोग्राम फास्फोरस (जिसके लिये यदि डीएपी उपलब्ध हैं तो 1 बोरी एवं डीएपी उपलब्ध नहीं है तो 2 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट व 24 किलोग्राम पोटाश (जिनकी पूर्ति आधा बोरी पोटाश के माध्यम से पोषक तत्वों की पूर्ति किया जा सकता है।
धान में खेत की तैयारी के बाद कंसे निकलते तक किसी भी प्रकार का खाद नहीं डालना चाहिए। जब फसल 45-50 दिन बाद धान में कंसे फूटने लगे तब 30 किलोग्राम नत्रजन जिनके लिए 2 बोरी यूरिया पुन: पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए।
सुगंधित एवं बौनी किस्मों के लिए जो किस्म देर पकने वाली है, उसके लिये प्रति एकड़ खेत में 48 किलोग्राम नत्रजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस और 24 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। जिसके लिये 2 बोरी यूरिया, 3 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट व 1 बोरी पोटाश की आवश्यकता होती है।
वहीं जल्दी और मध्यम पकने वालीे किस्मों में प्रति एकड़ भूमि में 48 किलोग्राम नत्रजन, 12 किलोग्राम फास्फोरस और 12 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें। जिसके लिये ढाई बोरी यूरिया, 2 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट व आधा बोरी पोटाश की आवश्यकता होती है।
दलहन एवं तिलहन फसल के लिए खेतों के लिये प्रति एकड़ 8 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 8 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। जिसके लिये आधा बोरी यूरिया, 1 बोरी पोटाश व आधा बोरी सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट को खेत में छिड़कना चाहिए।